Kavi Raj strikes back! - मेघ राजा

Dear Anonymous (The name sounds greek like Georgios or Demetrious :P),

Kavi Raj has risen up to the occasion and has presented a poem far removed from the style of the earlier Aiyashi. Goes a long way in reinforcing his range and what speed man (less than 24 hours!).

So without much ado, pesh kar rela hoon ...

मेघ राजा

बहुत दिन हो गए ऐ मेघ राजा
अब तो बरसो
के अब बीजों के अन्दर का जो था पानी भी सूखा
ना जी सके है कोई प्यासा है रह सकता बूखा
के अब हैं थक गए ये करते आओगे
आज, कल, परसों

बहुत दिन हो गए ऐ मेघ राजा
अब तो बरसो
ये प्यासी धरती कुछ ना करती अब है मुह फुलाए
के अब देगी ना दाना जब तक ना कण कण नहाये
ना दीखता जवार बाजरा गेहूं चावल
गायब है सरसों
बहुत दिन हो गए ऐ मेघ राजा
अब तो बरसो
के अब तो वो नदी जिसमे नहाते थी करती कल कल
के अब वो रो रही सूख के पानी को पल पल
ना ऐसी रह जाए ये सूखी
युहीं बरसों
बहुत दिन हो गए ऐ मेघ राजा
अब तो बरसो
के अब आँखें हुई पत्थर
हुए सब हौसले बत्तर
के कब तक बढाएं हिम्मत
मेरे बच्चों न तरसो
बहुत दिन हो गए ऐ मेघ राजा
अब तो बरसो

Comments and more challenges are solicited!!!

2 comments:

Anonymous said...

Wow! You have really written a masterpiece.

Anonymous said...

Great work. Both poems are amazing!